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रात के तीन बज रहे थे। दीपक लैपटॉप बंद करके खिड़की के पास आकर खड़ा हो गया। बाहर अंधेरा था, लेकिन अंदर उसके मन में उथल-पुथल थी। उसने खुद को आईने में देखा—थकी हुई आँखें, उलझे हुए ख्याल और सिर पर दूसरों के कामों का बोझ। 🤯
"मैं बुरा बनना चाहता हूँ..." उसने खुद से कहा। 😡
दीपक बचपन से ही सबका अच्छा चाहता था। दोस्त हो, रिश्तेदार हों, या दफ्तर के सहकर्मी—हर कोई उसे जरूरत पड़ने पर याद करता। कोई मदद मांगता तो वह ‘ना’ नहीं कह पाता। उसकी अच्छाई उसकी पहचान बन चुकी थी, लेकिन अब वही पहचान उसकी सबसे बड़ी कमजोरी थी। 😓
आज फिर ऑफिस में वही हुआ। उसे अपना प्रोजेक्ट पूरा करना था, लेकिन एक सहकर्मी ने कहा, "यार, मेरी फाइल्स तैयार नहीं हैं, प्लीज मेरी मदद कर दे।" और दीपक ने हाँ कह दिया। उसने अपनी फाइलों से ज्यादा दूसरों के काम पर ध्यान दिया, और फिर जब बॉस ने सवाल किया, तो सारा इल्ज़ाम उसी पर आ गया। 😰
रोज़ यही होता था। लोग उसका फायदा उठाते, और वह फिर भी मुस्कुरा देता। लेकिन अब उसे लगने लगा कि उसकी ये अच्छाई ही उसकी दुश्मन है।
उसने फैसला कर लिया—अब वह बदलेगा। 🙂
अगले दिन ऑफिस में जब एक सहकर्मी ने मदद मांगी, तो पहली बार दीपक ने जवाब दिया, "मुझे अपने काम से फुर्सत नहीं है, तुम खुद कर लो।" पहले तो लोगों को अजीब लगा, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें समझ आ गया कि दीपक बदल रहा है। 😄
कुछ दोस्तों ने दूरियां बना लीं, लेकिन जो सच्चे थे, वही टिके रहे। दीपक ने महसूस किया कि जो लोग सिर्फ जरूरत के लिए पास आते थे, वे अब आसपास भी नहीं भटक रहे थे और यह उसके लिए अच्छा था।
अब दीपक का समय उसका खुद का था। उसने अपने सपनों पर काम करना शुरू किया, अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ा। उसका ‘बुरा’ बनना दरअसल खुद के लिए अच्छा बनने की शुरुआत थी। 😍
सीख: दूसरों की हेल्प करना अच्छी बात है लेकिन जब अपने घर में आग लगी हो तब दूसरे के यहां की आग बुझाने जाना एक मूर्खता वाला काम है।
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