अच्छाई का बोझ उतारना चाहता हूँ।
हां, मैं बुरा बनना चाहता हूँ,
हर कोई मतलब से पास आता है,
काम निकालकर, गायब हो जाता है।
सामने मेरे मुझे, अपना बताता है;
मेरे पीठ पीछे, षड्यंत्र रचाता है।
ना मैं कमजोर हूँ, ना बेबस कोई,
पर अच्छाई ही मेरी दुश्मन हो गई।
हर किसी की उम्मीदें हैं मेरे सिर पर,
पर मेरे सपने, जैसे कि दबे हो ज़मीन पर।
अब अच्छाई का बोझ उतारना चाहता हूँ।
हां, मैं बुरा बनना चाहता हूँ,
अब खुद के लिए जीना चाहता हूँ।
अगर बेरुख़ी ही है समझदारी,
तो अब मैं थोड़ा बेरहम बनूंगा।
जो दिल से निभाए मेरी दोस्ती,
अब बस उसी के संग चलूंगा।
हां, मैं खुद को बदलना चाहता हूँ,
अब अपने लिए भी जीना चाहता हूँ ।
{ Written by Atreya }
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मनीषा मीना बेशक जो सबका होना चाहता हो फिर वो किसी का नहीं हो सकता, मगर सच्चाई और अच्छाई वजूद है हमारा फिर चाहे बदले ये जहां सारा।🙏🙏
- View 1 more replyATREYA @Mani9903 very right 🙌
Amrita achha likha hai
- View 1 more repliesATREYA @amrita_unicorn thanks miss 💙